भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बीत चली संध्या की वेला / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन | |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन | ||
− | |संग्रह= निशा | + | |संग्रह=निशा निमन्त्रण / हरिवंशराय बच्चन |
}} | }} | ||
15:40, 26 जुलाई 2008 का अवतरण
बीत चली संध्या की वेला!
धुंधली प्रति पल पड़नेवाली
एक रेख में सिमटी लाली
कहती है, समाप्त होती है सतरंगे बादल का मेला!
बीत चली संध्या की वेला!
नभ में कुछ द्युतिहीन सितारे
मांग रहे हैं हाथ पसारे-
'रजनी आए, रवि किरणों से हमने है दिन भर दुख झेला!
बीत चली संध्या की वेला!
अंतरिक्ष में आकुल-आतुर,
कभी इधर उड़, कभी उधर उड़,
पंथ नीड़ का खोज रहा है पिछड़ा पंछी एक- अकेला!
बीत चली संध्या की वेला!