भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"है यह पतझड़ की शाम, सखे! / हरिवंशराय बच्‍चन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
 
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
|संग्रह= निशा निमंत्रण / हरिवंशराय बच्चन
+
|संग्रह=निशा निमन्त्रण / हरिवंशराय बच्चन
 
}}
 
}}
  

15:41, 26 जुलाई 2008 का अवतरण

है यह पतझर की शाम, सखे!


नीलम-से पल्‍लव टूट गए,

मरकत-से साथी छूट गए,

अटके फिर भी दो पीत पात जीवन-डाली को थाम, सखे!

है यह पतझर की शाम, सखे!


लुक-छिप करके गानेवाली,

मानव से शरमानेवाली,

कू-कू कर कोयल मांग रही नूतन घूँघट अविराम, सखे!

है यह पतझर की शाम, सखे!


नंगे डालों पर नीड़ सघन,

नीड़ों में हैं कुछ-कुछ कंपन,

मत देख, नज़र लग जाएगी; यह चिड़‍ियों के सुखधाम, सखे!

है यह पतझर की शाम, सखे!