भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दोहा सप्तक-10 / रंजना वर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=रंजना वर्मा | |रचनाकार=रंजना वर्मा | ||
|अनुवादक= | |अनुवादक= | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=दोहा सप्तशती / रंजना वर्मा |
}} | }} | ||
{{KKCatDoha}} | {{KKCatDoha}} |
19:02, 13 जून 2018 के समय का अवतरण
सुख का स्वागत सब करें, दुःख को रहे निकाल।
शरणागत को हृदय में, हम ने लिया संभाल।।
बंटवारा ऐसा हुआ, ज्यों कलयुग का पाप।
माता तो यमपुर गयी, कहाँ रहेगा बाप।।
ऊपर तो सूरज तपे, नीचे तपता कर्ज
कौन बचाये कृषक को, लाइलाज है मर्ज।।
बना दरोगा कम पढ़ा, दे कर धन का ढेर।
है अंधे के हाथ भी, लगती कभी बटेर।।
धरा तवा सी तप रही, बरस रही है आग।
छाया को तरुवर नहीं, अब तो मानव जाग।।
चमक रही विद्युल्लता, गरज रहे घन घोर।
ग्रीष्म वाष्प पंछी उड़े, चले गगन की ओर।।
यादें मीठी नीम सी, तड़का मन महकाय।
मन पंछी व्याकुल उड़े, वहीं जाय मण्डराय।।