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"हमारा सर जो होता ख़म कहीं पर / राज़िक़ अंसारी" के अवतरणों में अंतर

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15:37, 21 जून 2018 के समय का अवतरण

हमारा सर जो होता ख़म कहीं पर
किसी ओहदे पे होते हम कहीं पर

नए किरदार लिक्खे जाएं फिर से
कहानी में नहीं है दम कहीं पर

मेरे कमरे में बस मेरे अलावा
कहीं आंसू रखे हैं ग़म कहीं पर

मेरी कोशिश है रख कर भूल जाऊं
तुम्हारी याद की अलबम कहीं पर

नहीं रहता कभी मायूस लोगों
हमेशा एक सा मौसम कहीं पर