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+ | तुम से उद्भाषित | ||
+ | रमी तुममें | ||
+ | 13 | ||
+ | न कोई धर्म | ||
+ | है सदैव पूजित | ||
+ | निष्काम कर्म | ||
+ | 14 | ||
+ | अनुगुंजन- | ||
+ | सृष्टि नित करती | ||
+ | हरि पूजन | ||
+ | 15 | ||
+ | गिरि उन्मुख | ||
+ | नित चुम्बन करें | ||
+ | नभ के मुख | ||
+ | 16 | ||
+ | हास जगाती | ||
+ | प्रकृति विदूषिका | ||
+ | मन रमाती | ||
+ | 17 | ||
+ | तुम संगीत | ||
+ | मैं लयबद्ध गीत | ||
+ | ओ मनमीत ! | ||
+ | 18 | ||
+ | है सुरापान- | ||
+ | अधर- प्याली पर | ||
+ | धरे चुम्बन . | ||
+ | 19 | ||
+ | कभी तो झुको | ||
+ | अन्यथा टूटोगे ही | ||
+ | तुम्हें गर्व क्यों | ||
+ | 20 | ||
+ | नम्र धरा सी | ||
+ | ओ रवि तेरा नित | ||
+ | परिभ्रमण | ||
+ | 21 | ||
+ | चहुँ दिशि में | ||
+ | गाये-मुस्काये नित | ||
+ | प्रेम विजित | ||
+ | 22 | ||
+ | सपने बाँचू | ||
+ | नित प्रेम से लिखी | ||
+ | पाती मन की | ||
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10:29, 5 जुलाई 2018 के समय का अवतरण
12
नहीं विलग
तुम से उद्भाषित
रमी तुममें
13
न कोई धर्म
है सदैव पूजित
निष्काम कर्म
14
अनुगुंजन-
सृष्टि नित करती
हरि पूजन
15
गिरि उन्मुख
नित चुम्बन करें
नभ के मुख
16
हास जगाती
प्रकृति विदूषिका
मन रमाती
17
तुम संगीत
मैं लयबद्ध गीत
ओ मनमीत !
18
है सुरापान-
अधर- प्याली पर
धरे चुम्बन .
19
कभी तो झुको
अन्यथा टूटोगे ही
तुम्हें गर्व क्यों
20
नम्र धरा सी
ओ रवि तेरा नित
परिभ्रमण
21
चहुँ दिशि में
गाये-मुस्काये नित
प्रेम विजित
22
सपने बाँचू
नित प्रेम से लिखी
पाती मन की