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"उड़कर नहीं देखा ! / ज्योत्स्ना शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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क्यूँ पास में थे पंख फिर उड़कर नहीं देखा ।
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वो प्यास से तड़पा बहुत ...शहरी गुरूर में ,
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था गाँव में पनघट, मगर मुड़कर नहीं देखा ।
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कुछ भी कठिन नहीं था,रही इक भूल हमारी ,
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बस एक ने भी एक से ..जुड़कर नहीं देखा ।
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बेपर्दगी , गुरबत का दर्द...... झेलना पड़ा ,
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जब पाँव ने चादर में सिकुड़कर नहीं देखा ।
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ये नफरतों की आग बुझे भी तो किस तरहा ,
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आँखों के समंदर ने ...निचुड़कर नहीं देखा ।
  
 
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04:08, 6 जुलाई 2018 के समय का अवतरण


बीती हुई बातों से....बिछुड़कर नहीं देखा ,
क्यूँ पास में थे पंख फिर उड़कर नहीं देखा ।

वो प्यास से तड़पा बहुत ...शहरी गुरूर में ,
था गाँव में पनघट, मगर मुड़कर नहीं देखा ।

कुछ भी कठिन नहीं था,रही इक भूल हमारी ,
बस एक ने भी एक से ..जुड़कर नहीं देखा ।

बेपर्दगी , गुरबत का दर्द...... झेलना पड़ा ,
जब पाँव ने चादर में सिकुड़कर नहीं देखा ।

ये नफरतों की आग बुझे भी तो किस तरहा ,
आँखों के समंदर ने ...निचुड़कर नहीं देखा ।