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"आम्बो तलै क्यूँ खड़ी (सावन गीत) / खड़ी बोली" के अवतरणों में अंतर
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23:37, 16 जुलाई 2008 का अवतरण
सावन –गीत
‘’आम्बों की ठाण्डळी छाँव
आम्बों तळै क्यूँ खड़ी ?
क्या तेरे पिया परदेश
क्या घर सास बुरी’’
“ चल-चल मूरख गँवार
तुझै मेरी क्या पड़ी
ना मेरे ओइया परदेश
ना घर सास बुरी।” आम्बो…
कोरी –सी कुल्हिया मँगाई दहिया जमावती
आया है कालड़ा काग ,दही तो मेरी चाख गया ,
उड़-उड़ काले काग तेरी चोंच बुरी।” आम्बो…
“नाक में सोन्ने की नथ ,गूँठे में तेरे आरसी
है कोई चतुर सुजान जो पूछै तेरी पारसी।” आम्बो…
“ सासू का जाया है पूत ,नणदिया का बीर
वो ही है चतुर सुजान, पूछैगा मेरी पारसी । आम्बो…
“आया है जो सावण मास थाम गड़ावती
जो घर होते म्हारे श्याम , मैं झूला झूलती । आम्बो…
[ यह बारहमासा गीत है ।क्रमश: सभी महीनों एवं उनकी विशेषताओं का वर्णन किया जाता है ।]