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"तुम दीवाली बन कर / गोपालदास "नीरज"" के अवतरणों में अंतर

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तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो,
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मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊंगा!
  
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सूनी है मांग निशा की चंदा उगा नहीं
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हर द्वार पड़ा खामोश सवेरा रूठ गया,
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है गगन विकल, आ गया सितारों का पतझर
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तम ऎसा है कि उजाले का दिल टूट गया,
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तुम जाओ घर-घर दीपक बनकर मुस्काओ
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मैं भाल-भाल पर कुंकुम बन लग जाऊंगा!
  
तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो,<br>
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तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो,
मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊंगा!<br><br>
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मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊंगा!
  
सूनी है मांग निशा की चंदा उगा नहीं<br>
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कर रहा नृत्य विध्वंस, सृजन के थके चरण,
हर द्वार पड़ा खामोश सवेरा रूठ गया,<br>
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संस्कृति की इति हो रही, क्रुद्व हैं दुर्वासा,
है गगन विकल, आ गया सितारों का पतझर<br>
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बिक रही द्रौपदी नग्न खड़ी चौराहे पर,
तम ऎसा है कि उजाले का दिल टूट गया,<br>
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पढ रहा किन्तु साहित्य सितारों की भाषा,
तुम जाओ घर-घर दीपक बनकर मुस्काओ<br>
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तुम गाकर दीपक राग जगा दो मुर्दों को
मैं भाल-भाल पर कुंकुम बन लग जाऊंगा!<br><br>
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मैं जीवित को जीने का अर्थ बताऊंगा!
  
तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो,<br>
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तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो,
मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊंगा!<br><br>
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मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊंगा!
  
कर रहा नृत्य विध्वंस, सृजन के थके चरण,<br>
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इस कदर बढ रही है बेबसी बहारों की
संस्कृति की इति हो रही, क्रुद्व हैं दुर्वासा,<br>
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फूलों को मुस्काना तक मना हो गया है,
बिक रही द्रौपदी नग्न खड़ी चौराहे पर,<br>
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इस तरह हो रही है पशुता की पशु-क्रीड़ा
पढ रहा किन्तु साहित्य सितारों की भाषा,<br>
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लगता है दुनिया से इन्सान खो गया है,
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तुम जाओ भटकों को रास्ता बता आओ
मैं जीवित को जीने का अर्थ बताऊंगा!<br><br>
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मैं इतिहास को नये सफे दे जाऊंगा!
  
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तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो,
मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊंगा!<br><br>
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मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊंगा!
  
इस कदर बढ रही है बेबसी बहारों की<br>
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मैं देख रहा नन्दन सी चन्दन बगिया में,
फूलों को मुस्काना तक मना हो गया है,<br>
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रक्त के बीज फिर बोने की तैयारी है,
इस तरह हो रही है पशुता की पशु-क्रीड़ा<br>
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मैं देख रहा परिमल पराग की छाया में
लगता है दुनिया से इन्सान खो गया है,<br>
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उड़ कर आ बैठी फिर कोई चिन्गारी है,
तुम जाओ भटकों को रास्ता बता आओ<br>
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पीने को यह सब आग बनो यदि तुम सावन
मैं इतिहास को नये सफे दे जाऊंगा!<br><br>
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मैं तलवारों से मेघ-मल्हार गवाऊंगा!
  
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तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो,
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मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊंगा!
  
मैं देख रहा नन्दन सी चन्दन बगिया में,<br>
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जब खेल रही है सारी धरती लहरों से
रक्त के बीज फिर बोने की तैयारी है,<br>
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तब कब तक तट पर अपना रहना सम्भव है!
मैं देख रहा परिमल पराग की छाया में<br>
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संसार जल रहा है जब दुख की ज्वाला में
उड़ कर आ बैठी फिर कोई चिन्गारी है,<br>
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तब कैसे अपने सुख को सहना सम्भव है!
पीने को यह सब आग बनो यदि तुम सावन<br>
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मिटते मानव और मानवता की रक्षा में
मैं तलवारों से मेघ-मल्हार गवाऊंगा!<br><br>
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प्रिय! तुम भी मिट जाना, मैं भी मिट जाऊंगा!
  
तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो,<br>
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तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो,
मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊंगा!<br><br>
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मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊंगा!
 
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तब कैसे अपने सुख को सहना सम्भव है!<br>
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प्रिय! तुम भी मिट जाना, मैं भी मिट जाऊंगा!<br><br>
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मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊंगा!<br><br>
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20:58, 19 जुलाई 2018 के समय का अवतरण

तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो,
मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊंगा!

सूनी है मांग निशा की चंदा उगा नहीं
हर द्वार पड़ा खामोश सवेरा रूठ गया,
है गगन विकल, आ गया सितारों का पतझर
तम ऎसा है कि उजाले का दिल टूट गया,
तुम जाओ घर-घर दीपक बनकर मुस्काओ
मैं भाल-भाल पर कुंकुम बन लग जाऊंगा!

तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो,
मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊंगा!

कर रहा नृत्य विध्वंस, सृजन के थके चरण,
संस्कृति की इति हो रही, क्रुद्व हैं दुर्वासा,
बिक रही द्रौपदी नग्न खड़ी चौराहे पर,
पढ रहा किन्तु साहित्य सितारों की भाषा,
तुम गाकर दीपक राग जगा दो मुर्दों को
मैं जीवित को जीने का अर्थ बताऊंगा!

तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो,
मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊंगा!

इस कदर बढ रही है बेबसी बहारों की
फूलों को मुस्काना तक मना हो गया है,
इस तरह हो रही है पशुता की पशु-क्रीड़ा
लगता है दुनिया से इन्सान खो गया है,
तुम जाओ भटकों को रास्ता बता आओ
मैं इतिहास को नये सफे दे जाऊंगा!

तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो,
मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊंगा!

मैं देख रहा नन्दन सी चन्दन बगिया में,
रक्त के बीज फिर बोने की तैयारी है,
मैं देख रहा परिमल पराग की छाया में
उड़ कर आ बैठी फिर कोई चिन्गारी है,
पीने को यह सब आग बनो यदि तुम सावन
मैं तलवारों से मेघ-मल्हार गवाऊंगा!

तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो,
मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊंगा!

जब खेल रही है सारी धरती लहरों से
तब कब तक तट पर अपना रहना सम्भव है!
संसार जल रहा है जब दुख की ज्वाला में
तब कैसे अपने सुख को सहना सम्भव है!
मिटते मानव और मानवता की रक्षा में
प्रिय! तुम भी मिट जाना, मैं भी मिट जाऊंगा!

तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो,
मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊंगा!