"सेज पर साधें बिछा लो / गोपालदास "नीरज"" के अवतरणों में अंतर
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+ | आँख में सपने सजा लो | ||
+ | प्यार का मौसम शुभे! हर रोज़ तो आता नहीं है। | ||
− | + | यह हवा यह रात, यह | |
− | + | एकाँत, यह रिमझिम घटाएँ, | |
− | प्यार का मौसम | + | यूँ बरसती हैं कि पंडित- |
+ | मौलवी पथ भूल जाएँ, | ||
+ | बिजलियों से माँग भर लो | ||
+ | बादलों से संधि कर लो | ||
+ | उम्र-भर आकाश में पानी ठहर पाता नहीं है। | ||
+ | प्यार का मौसम... | ||
− | + | दूध-सी साड़ी पहन तुम | |
− | + | सामने ऐसे खड़ी हो, | |
− | + | जिल्द में साकेत की | |
− | + | कामायनी जैसे मढ़ी हो, | |
− | + | लाज का वल्कल उतारो | |
− | + | प्यार का कँगन उजारो, | |
− | + | 'कनुप्रिया' पढ़ता न वह 'गीतांजलि' गाता नहीं है। | |
− | प्यार का मौसम... | + | प्यार का मौसम... |
− | + | हो गए स दिन हवन तब | |
− | + | रात यह आई मिलन की | |
− | + | उम्र कर डाली धुआँ जब | |
− | + | तब उठी डोली जलन की, | |
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− | + | मत लजाओ पास आओ | |
− | + | ख़ुशबूओं में डूब जाओ, | |
− | + | कौन है चढ़ती उमर जो केश गुथवाता नहीं है। | |
− | + | प्यार का मौसम... | |
− | + | है अमर वह क्षण कि जिस क्षण | |
− | + | ध्यान सब जतकर भुवन का, | |
− | + | मन सुने संवाद तन का, | |
− | + | तन करे अनुवाद मन का, | |
− | + | चाँदनी का फाग खेलो, | |
− | + | गोद में सब आग ले लो, | |
− | + | रोज़ ही मेहमान घर का द्वार खटकाता नहीं है। | |
− | + | प्यार का मौसम... | |
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− | चाँदनी का फाग खेलो, | + | |
− | गोद में सब आग ले लो, | + | |
− | रोज़ ही मेहमान घर का द्वार खटकाता नहीं है। | + | |
− | प्यार का मौसम... | + | |
− | वक़्त तो उस चोर नौकर की | + | वक़्त तो उस चोर नौकर की |
− | तरह से है सयाना, | + | तरह से है सयाना, |
− | जो मचाता शोर ख़ुद ही | + | जो मचाता शोर ख़ुद ही |
− | लूट कर घर का ख़ज़ाना, | + | लूट कर घर का ख़ज़ाना, |
− | व़क्त पर पहरा बिठाओ | + | व़क्त पर पहरा बिठाओ |
− | रात जागो औ' जगाओ, | + | रात जागो औ' जगाओ, |
− | प्यार सो जाता जहाँ भगवान सो जाता वहीं है। | + | प्यार सो जाता जहाँ भगवान सो जाता वहीं है। |
प्यार का मौसम... | प्यार का मौसम... | ||
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21:07, 19 जुलाई 2018 के समय का अवतरण
सेज पर साधें बिछा लो,
आँख में सपने सजा लो
प्यार का मौसम शुभे! हर रोज़ तो आता नहीं है।
यह हवा यह रात, यह
एकाँत, यह रिमझिम घटाएँ,
यूँ बरसती हैं कि पंडित-
मौलवी पथ भूल जाएँ,
बिजलियों से माँग भर लो
बादलों से संधि कर लो
उम्र-भर आकाश में पानी ठहर पाता नहीं है।
प्यार का मौसम...
दूध-सी साड़ी पहन तुम
सामने ऐसे खड़ी हो,
जिल्द में साकेत की
कामायनी जैसे मढ़ी हो,
लाज का वल्कल उतारो
प्यार का कँगन उजारो,
'कनुप्रिया' पढ़ता न वह 'गीतांजलि' गाता नहीं है।
प्यार का मौसम...
हो गए स दिन हवन तब
रात यह आई मिलन की
उम्र कर डाली धुआँ जब
तब उठी डोली जलन की,
मत लजाओ पास आओ
ख़ुशबूओं में डूब जाओ,
कौन है चढ़ती उमर जो केश गुथवाता नहीं है।
प्यार का मौसम...
है अमर वह क्षण कि जिस क्षण
ध्यान सब जतकर भुवन का,
मन सुने संवाद तन का,
तन करे अनुवाद मन का,
चाँदनी का फाग खेलो,
गोद में सब आग ले लो,
रोज़ ही मेहमान घर का द्वार खटकाता नहीं है।
प्यार का मौसम...
वक़्त तो उस चोर नौकर की
तरह से है सयाना,
जो मचाता शोर ख़ुद ही
लूट कर घर का ख़ज़ाना,
व़क्त पर पहरा बिठाओ
रात जागो औ' जगाओ,
प्यार सो जाता जहाँ भगवान सो जाता वहीं है।
प्यार का मौसम...