भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सेज पर साधें बिछा लो / गोपालदास "नीरज"" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोपालदास "नीरज" }} सेज पर साधें बिछा लो,<br> आँख में सपने सज...)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=गोपालदास "नीरज"
 
|रचनाकार=गोपालदास "नीरज"
 
}}
 
}}
 +
<poem>
 +
सेज पर साधें बिछा लो,
 +
आँख में सपने सजा लो
 +
प्यार का मौसम शुभे! हर रोज़ तो आता नहीं है।
  
सेज पर साधें बिछा लो,<br>
+
यह हवा यह रात, यह
आँख में सपने सजा लो<br>
+
एकाँत, यह रिमझिम घटाएँ,
प्यार का मौसम शुभे! हर रोज़ तो आता नहीं है।<br><br>
+
यूँ बरसती हैं कि पंडित-
 +
मौलवी पथ भूल जाएँ,
 +
बिजलियों से माँग भर लो
 +
बादलों से संधि कर लो
 +
उम्र-भर आकाश में पानी ठहर पाता नहीं है।
 +
प्यार का मौसम...
  
यह हवा यह रात, यह <br>
+
दूध-सी साड़ी पहन तुम
एकाँत, यह रिमझिम घटाएँ,<br>
+
सामने ऐसे खड़ी हो,
यूँ बरसती हैं कि पंडित-<br>
+
जिल्द में साकेत की
मौलवी पथ भूल जाएँ,<br>
+
कामायनी जैसे मढ़ी हो,
बिजलियों से माँग भर लो<br>
+
लाज का वल्कल उतारो
बादलों से संधि कर लो<br>
+
प्यार का कँगन उजारो,
उम्र-भर आकाश में पानी ठहर पाता नहीं है।<br>
+
'कनुप्रिया' पढ़ता न वह 'गीतांजलि' गाता नहीं है।
प्यार का मौसम...<br><br>
+
प्यार का मौसम...
  
दूध-सी साड़ी पहन तुम<br>
+
हो गए स दिन हवन तब
सामने ऐसे खड़ी हो,<br>
+
रात यह आई मिलन की
जिल्द में साकेत की<br>
+
उम्र कर डाली धुआँ जब
कामायनी जैसे मढ़ी हो,<br>
+
तब उठी डोली जलन की,
लाज का वल्कल उतारो<br>
+
प्यार का कँगन उजारो,<br>
+
'कनुप्रिया' पढ़ता न वह 'गीतांजलि' गाता नहीं है।<br>
+
प्यार का मौसम...<br><br>
+
  
हो गए स दिन हवन तब<br>
+
मत लजाओ पास आओ
रात यह आई मिलन की<br>
+
ख़ुशबूओं में डूब जाओ,
उम्र कर डाली धुआँ जब<br>
+
कौन है चढ़ती उमर जो केश गुथवाता नहीं है।
तब उठी डोली जलन की,<br><br>
+
प्यार का मौसम...
  
मत लजाओ पास आओ<br>
+
है अमर वह क्षण कि जिस क्षण
ख़ुशबूओं में डूब जाओ,<br>
+
ध्यान सब जतकर भुवन का,
कौन है चढ़ती उमर जो केश गुथवाता नहीं है।<br>
+
मन सुने संवाद तन का,
प्यार का मौसम...<br><br>
+
तन करे अनुवाद मन का,
  
है अमर वह क्षण कि जिस क्षण<br>
+
चाँदनी का फाग खेलो,
ध्यान सब जतकर भुवन का,<br>
+
गोद में सब आग ले लो,
मन सुने संवाद तन का,<br>
+
रोज़ ही मेहमान घर का द्वार खटकाता नहीं है।
तन करे अनुवाद मन का,<br><br>
+
प्यार का मौसम...
 
+
चाँदनी का फाग खेलो,<br>
+
गोद में सब आग ले लो,<br>
+
रोज़ ही मेहमान घर का द्वार खटकाता नहीं है।<br>
+
प्यार का मौसम...<br><br>
+
  
वक़्त तो उस चोर नौकर की<br>
+
वक़्त तो उस चोर नौकर की
तरह से है सयाना,<br>
+
तरह से है सयाना,
जो मचाता शोर ख़ुद ही<br>
+
जो मचाता शोर ख़ुद ही
लूट कर घर का ख़ज़ाना,<br><br>
+
लूट कर घर का ख़ज़ाना,
  
व़क्त पर पहरा बिठाओ<br>
+
व़क्त पर पहरा बिठाओ
रात जागो औ' जगाओ,<br>
+
रात जागो औ' जगाओ,
प्यार सो जाता जहाँ भगवान सो जाता वहीं है।<br>
+
प्यार सो जाता जहाँ भगवान सो जाता वहीं है।
 
प्यार का मौसम...
 
प्यार का मौसम...
 +
</poem>

21:07, 19 जुलाई 2018 के समय का अवतरण

सेज पर साधें बिछा लो,
आँख में सपने सजा लो
प्यार का मौसम शुभे! हर रोज़ तो आता नहीं है।

यह हवा यह रात, यह
एकाँत, यह रिमझिम घटाएँ,
यूँ बरसती हैं कि पंडित-
मौलवी पथ भूल जाएँ,
बिजलियों से माँग भर लो
बादलों से संधि कर लो
उम्र-भर आकाश में पानी ठहर पाता नहीं है।
प्यार का मौसम...

दूध-सी साड़ी पहन तुम
सामने ऐसे खड़ी हो,
जिल्द में साकेत की
कामायनी जैसे मढ़ी हो,
लाज का वल्कल उतारो
प्यार का कँगन उजारो,
'कनुप्रिया' पढ़ता न वह 'गीतांजलि' गाता नहीं है।
प्यार का मौसम...

हो गए स दिन हवन तब
रात यह आई मिलन की
उम्र कर डाली धुआँ जब
तब उठी डोली जलन की,

मत लजाओ पास आओ
ख़ुशबूओं में डूब जाओ,
कौन है चढ़ती उमर जो केश गुथवाता नहीं है।
प्यार का मौसम...

है अमर वह क्षण कि जिस क्षण
ध्यान सब जतकर भुवन का,
मन सुने संवाद तन का,
तन करे अनुवाद मन का,

चाँदनी का फाग खेलो,
गोद में सब आग ले लो,
रोज़ ही मेहमान घर का द्वार खटकाता नहीं है।
प्यार का मौसम...

वक़्त तो उस चोर नौकर की
तरह से है सयाना,
जो मचाता शोर ख़ुद ही
लूट कर घर का ख़ज़ाना,

व़क्त पर पहरा बिठाओ
रात जागो औ' जगाओ,
प्यार सो जाता जहाँ भगवान सो जाता वहीं है।
प्यार का मौसम...