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"तुम ही नहीं मिले जीवन में / गोपालदास "नीरज"" के अवतरणों में अंतर

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पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनारे
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इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन में
  
पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनारे<br>
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हुई दोस्ती ऐसी दु:ख से
इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन में<br><br>
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हर मुश्किल बन गई रुबाई,
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इतना प्यार जलन कर बैठी
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क्वाँरी ही मर गई जुन्हाई,
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बगिया में न पपीहा बोला, द्वार न कोई उतरा डोला,
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सारा दिन कट गया बीनते काँटे उलझे हुए बसन में।
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पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनारे
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इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन में
  
हुई दोस्ती ऐसी दु:ख से <br>
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कहीं चुरा ले चोर न कोई
हर मुश्किल बन गई रुबाई, <br>
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दर्द तुम्हारा, याद तुम्हारी,
इतना प्यार जलन कर बैठी<br>
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इसीलिए जगकर जीवन-भर
क्वाँरी ही मर गई जुन्हाई,<br>
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आँसू ने की पहरेदारी,
बगिया में न पपीहा बोला, द्वार न कोई उतरा डोला,<br>
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बरखा गई सुने बिन वंशी औ' मधुमास रहा निरवंशी,
सारा दिन कट गया बीनते काँटे उलझे हुए बसन में।<br>
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गुजर गई हर ऋतु ज्यों कोई भिक्षुक दम तोड़े दे विजन में।
पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनारे<br>
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पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनारे
इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन में<br><br>
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इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन में
  
कहीं चुरा ले चोर न कोई<br>
 
दर्द तुम्हारा, याद तुम्हारी,<br>
 
इसीलिए जगकर जीवन-भर<br>
 
आँसू ने की पहरेदारी,<br>
 
बरखा गई सुने बिन वंशी औ' मधुमास रहा निरवंशी,<br>
 
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घट भरने को छलके पनघट
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सेज सजाने दौड़ी कलियाँ,
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पर तेरी तलाश में पीछे
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छूट गई सब रस की गलियाँ,
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सपने खेल न पाए होली, अरमानों के लगी न रोली,
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बचपन झुलस गया पतझर में, यौवन भीग गया सावन में।
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पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनारे
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घट भरने को छलके पनघट<br>
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मिट्‍टी तक तो रुंदकर जग में कंकड़ से बन गई खिलौना,
सेज सजाने दौड़ी कलियाँ,<br>
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पर हर चोट ब्याह करके भी
पर तेरी तलाश में पीछे<br>
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मेरा सूना रहा बिछौना,
छूट गई सब रस की गलियाँ,<br>
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नहीं कहीं से पाती आई, नहीं कहीं से मिली बधाई
सपने खेल न पाए होली, अरमानों के लगी न रोली,<br>
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बचपन झुलस गया पतझर में, यौवन भीग गया सावन में।<br>
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पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनारे
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नहीं कहीं से पाती आई, नहीं कहीं से मिली बधाई<br>
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सूनी ही रह गई डाल इस इतने फूलों भरे चमन में।<br>
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तुम ही हो वो जिसकी खातिर<br>
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तुम ही हो वो जिसकी खातिर
निशि-दिन घूम रही यह तकली<br>
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एक सूत-भर की दूरी है बस दामन में और कफन में।<br>
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पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनारे<br>
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पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनारे
 
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21:08, 19 जुलाई 2018 के समय का अवतरण

पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनारे
इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन में

हुई दोस्ती ऐसी दु:ख से
हर मुश्किल बन गई रुबाई,
इतना प्यार जलन कर बैठी
क्वाँरी ही मर गई जुन्हाई,
बगिया में न पपीहा बोला, द्वार न कोई उतरा डोला,
सारा दिन कट गया बीनते काँटे उलझे हुए बसन में।
पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनारे
इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन में

कहीं चुरा ले चोर न कोई
दर्द तुम्हारा, याद तुम्हारी,
इसीलिए जगकर जीवन-भर
आँसू ने की पहरेदारी,
बरखा गई सुने बिन वंशी औ' मधुमास रहा निरवंशी,
गुजर गई हर ऋतु ज्यों कोई भिक्षुक दम तोड़े दे विजन में।
पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनारे
इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन में


घट भरने को छलके पनघट
सेज सजाने दौड़ी कलियाँ,
पर तेरी तलाश में पीछे
छूट गई सब रस की गलियाँ,
सपने खेल न पाए होली, अरमानों के लगी न रोली,
बचपन झुलस गया पतझर में, यौवन भीग गया सावन में।
पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनारे
इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन में

मिट्‍टी तक तो रुंदकर जग में कंकड़ से बन गई खिलौना,
पर हर चोट ब्याह करके भी
मेरा सूना रहा बिछौना,
नहीं कहीं से पाती आई, नहीं कहीं से मिली बधाई
सूनी ही रह गई डाल इस इतने फूलों भरे चमन में।
पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनारे
इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन में

तुम ही हो वो जिसकी खातिर
निशि-दिन घूम रही यह तकली
तुम ही यदि न मिले तो है सब
व्यर्थ कताई असली-नकली,
अब तो और न देर लगाओ, चाहे किसी रूप में आओ,
एक सूत-भर की दूरी है बस दामन में और कफन में।
पीड़ा मिली जनम के द्वारे अपयश नदी किनारे
इतना कुछ मिल पाया एक बस तुम ही नहीं मिले जीवन में