भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आफ़ात का गहवारा है हस्ती मेरी / रतन पंडोरवी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=रतन पंडोरवी | |रचनाकार=रतन पंडोरवी | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=हुस्ने-नज़र / रतन पंडोरवी |
}} | }} | ||
<poem> | <poem> |
13:08, 13 अगस्त 2018 के समय का अवतरण
आफ़ात का गहवारा है हस्ती मेरी
वीराने से वीरान है बस्ती मेरी।
इस पर भी 'रतन' दिल को सुकूँ हासिल है
हैरान हैं सब देख के हस्ती मेरी।
आबाद है अनवार की दुनिया दिल में
बैठा है कोई दिलबरे-राना दिल में
देखा है 'रतन' चश्मे-हक़ीक़त बीं ने
रानाईए-मस्तूर का जल्वा दिल में।
मशहूर ज़माने में है बख़्शिश तेरी
हर शाह-ओ-गदा पर है नवाज़िश तेरी
अब अपने 'रतन' पर भी करम कर या रब
करता है दिल-ओ-जां परस्तिश तेरी
हर दर्द का हर दुख का मुदावा तू है
बे यार का बे कस का सहारा तू है
किस दर पे बनूँ जाके सवाली या रब
जब सब के नसीबा का नसीबा तू है