"ब्रह्मा जी नै रची स्रष्टि, फैलादी त्रिगुणी माया / ललित कुमार" के अवतरणों में अंतर
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ललित कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatHa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
00:17, 23 अगस्त 2018 का अवतरण
ब्रह्मा जी नै रची सृष्टि, फैलादी त्रिगुणी माया,
वैसा ही फल मिलै जगत म्य, जैसा बन्दे कर्म कमाया || टेक ||
असुर कुल जन्मे गया, विष्णु जी नै रटण लागे,
श्रीहरि नै दिया वरदान, दर्शन तै पाप कटण लागे,
न्यू पापी जग मै घटण लागे, देख यम घबराया ||
विश्रवेसुर का पुत्र रावण, ब्राहमण हो अभिमानी हुआ,
पारासर का वेद्ब्यास, तप करके महाज्ञानी हुआ,
सूर्य का कर्ण दानी हुआ, न्यू दानी नाम धराया ||
गंधर्व पुत्र विश्वावसु नै, ऋषियों का किया अपमान,
वशिष्ठ ऋषि नै श्राप दे दिया, राक्षस रूपी बणज्या शान,
ऋषि का यो सुण ऐलान, विश्वावसु घबराया ||
गुरु जगदीश ज्ञान का सागर, ललित तिरके होज्या पार,
जमदग्नि के परशुराम नै, पृथ्वी जीती इक्कीस बार,
आहुष पुत्र होया नाहुष जार, अजगर बणा स्वर्ग तै गिराया ||