भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सोचा, हुआ परिणाम क्या / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन }} सोचा, हुआ परिणाम क्या? जब सुप्त ब...) |
|||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन | |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन | ||
+ | |संग्रह=एकांत-संगीत / हरिवंशराय बच्चन | ||
}} | }} | ||
− | |||
सोचा, हुआ परिणाम क्या? | सोचा, हुआ परिणाम क्या? |
15:55, 26 जुलाई 2008 का अवतरण
सोचा, हुआ परिणाम क्या?
जब सुप्त बड़वानल जगा,
जब खौलने सागर लगा,
उमड़ीं तरंगे ऊर्ध्वगा,
लें तारकों को भी डुबा, तुमने कहा-हो शीत, जम!
सोचा, हुआ परिणाम क्या?
जब उठ पड़ा मारुत मचल
हो अग्निमय, रजमय, सजल,
झोंके चले ऐसे प्रबल,
दे पर्वतों को भी उड़ा, तुमने कहा-हो मौन, थम!
सोचा, हुआ परिणाम क्या?
जब जग पड़ी तृष्णा अमर,
दृग में फिरी विद्युत लहर,
आतुर हुए ऐसे अधर,
पी लें अतल मधु-सिंधु को, तुमने कहा-मदिरा खतम!
सोचा, हुआ परिणाम क्या?