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बैगा लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

तरी नानी नानर नानी नानार रे नान,
आधी रातक बीचे दाई का चिरैया बोलय।
आधी रातक बीचे दाई का चिरैया बोलय।
ढप ढपा ढप ढप दाई सोने मिर्गा बोलय
सोने मिर्गा बोलत दाई, होथय बिहान।
उठो कि उठो सांघी, लूगरा समहारा।
लूगरा समहारा संगी बढ़ा झेलो लगाय।
काहिन लागे गघरी दाई, काहिन लागय गुठरी।
एक गगा सारय दाई, सातों ही समदूर।
सातो ही समदूर दाई, मारे हिलोरा।
तरी नानी नानर नानी नानार रे नान।
सोन टेटकी सोन भेजकी, पानी भरन देय।
ककड़ा मन कुँवर दाई, पानी भरन देय।

शब्दार्थ –सुई चिरैया=पपीहा, सोन मिर्गा= सोने का मुर्गा (स्वर्ण मुर्गा जिसका रंग सोने जैसा हो ), संघी=सहेली, लूगरा-साड़ी, झेलो=देर, टेटकी/भेजकी=मेंढक, समदूर=समुद्र (नदी), ककड़ापन कुँवर=केकड़ा, सारय=चले, डगा= पग, गुदरी-चोमल।

दुल्हन अपनी माँ से पूछती है – ऐ माँ ! आधी रात को यह कौन सी चिड़िया (पक्षी) बोलती है, माँ कहती हैं- आधी रात को बारह-एक बजे सुई नाम की चिड़िया (पक्षी) बोलती है। उसके बोलने का यही समय होता है। रात तीन-चार बजे बाद ‘ढपढपा ढप ढप’ माँ सोन मुर्गा क्यों बोलता है।
सोन मुर्गा (सोन कुकड़ी) के बोलने से बेटी सुबह होती है। दुल्हन की सहेली बोली- उठो सहेली, जल्दी उठो। सोन मुर्गा बोल रहा है। सुबह होने वाली है। जल्दी से अपनी साड़ी (लूगरा) संभालो। ठीक कर लो और जल्दी तैयार हो जाओ।

तब दुल्हन कहती है- मुझे साड़ी सँवारने में थोड़ी देर लगेगी। जरा ठहरो। ऐ माँ! पानी भरने जाने के लिये किस चीज के मटकी और किस चीज की गुडरी याने चोमल लगेगी।
ऐ बेटी! घर में सोने की गागरी और चाँदी की चोमल रखी है। चोमल को सिर पर रखकर सोने की गागरी में पानी ले आओ। दुल्हन सहेलियों के साथ पानी लेनें चल दी। एक पग दो पग धरते-धरते वे समुद्र के तट पर पहुँच गई। (गीत में सातों समुद्र के तट की बात कही गई है। पुराख्यानों में भी पृथ्वी पर सात समुद्र होने की बात आती है। सम्भवतया गी के अर्थ को व्यापकता देने के गरज से यह कल्पना की गई है। समुद्र का अर्थ यहाँ बड़े जलाशय या नदी के अर्थ में गाँव की समीपता को देखते हुए ले सकते है।)
ऐ माँ! सातों समुद्रों में बड़ी-बड़ी लहरें उठ रही हैं। समुद्र के तट पर पहुँचकर गीत गाने वाली महिलाएँ और साथ में आये दोसी ने वहाँ चौक पूरा। उस पर नेग के रूप में पैसे रखे। कंडे की आग जलाये। हूम-धूप दिया। दीप जलाया। अगरबती जलाये। उस पर दारू छुहाई। गीतकारिनों को तीन छाके (एक पत्ते का दोना) दारू पिलाई। फिर गीत गाते हुए महिलाओं ने समुद्र से पानी देने की प्रार्थना की।

हे सोने की मेंढक रानी। हे ककरामल कुँवर केकड़े! हमें शुभ विवाह के लिये समुद्र से जल भरने दो। तब सोने के कलश में दोसी और महिलाएँ दुल्हन के साथ पवित्र जल लेकर घर आये।