भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"धूप ये अठखेलियाँ हर रोज़ करती है / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दुष्यंत कुमार |संग्रह=साये में धूप / दुष्यन्त कुमार }} [[Ca...)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:31, 25 जुलाई 2008 के समय का अवतरण

धूप ये अठखेलियाँ हर रोज़ करती है

एक छाया सीढ़ियाँ चढ़ती—उतरती है


यह दिया चौरास्ते का ओट में ले लो

आज आँधी गाँव से हो कर गुज़रती है


कुछ बहुत गहरी दरारें पड़ गईं मन में

मीत अब यह मन नहीं है एक धरती है


कौन शासन से कहेगा, कौन पूछेगा

एक चिड़िया इन धमाकों से सिहरती है


मैं तुम्हें छू कर ज़रा—सा छेड़ देता हूँ

और गीली पाँखुरी से ओस झरती है


तुम कहीं पर झील हो मैं एक नौका हूँ

इस तरह की कल्पना मन में उभरती है