भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"काला जादू हो तुम / निशांत" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशांत |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poe...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:11, 13 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण
एक बच्ची-सी हिरणी की तरह है
तुम्हारा चेहरा और
एक परिपक्व शेरनी की तरह है
तुम्हारा व्यवहार
बारिश होती है
झम झम-झम भीतर
एक बांध टूटता है
तुम्हारा लिलार
आँखे गाल होंठ कान गला बुबू कन्धों को
चूमता हूँ
तनती है तुम्हारी देह
चम चम चमकने लगती है तुम्हारी त्वचा
अद्भूत!
अद्भूत है यह संयोजन
प्यार आता है तुम पर
डर लगता है तुम से
समुद्र की तरह हरहराती हो तुम
सुराही की तरह है तुम्हारा मीठा जल
कितने आकाश है तुम्हारे पास
क्या हो तुम?
जादू हो तुम!
काला जादू!
मैं विस्मृत होता हूँ तुम्हे देखकर
मंत्रमुग्ध होता हूँ
प्यार कर।