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इन्होंने अपने समय मे सामयिक पत्रों में समस्या-पूर्त्तियाँ करने में विशेष भाग लिया। इनके सम्बन्ध में एक रोचक प्रसंग उल्लेख-योग्य है। उन्हीं दिनों बलदेवप्रसाद अवस्थी नाम के एक कवि अबध के राजा प्रताप बहादुरसिंह के यहाँ राजकवि के रूप में रहते थे। इनकी भी समस्या-पूर्त्तियाँ बड़ी टकसाली होती थीं। चन्द्रकलाजी पर बलदेव जी की कवित्त्व-शक्ति का बड़ा प्रभाव पड़ा और उन्होंने उनसे पत्र-व्यवहार करके बूँदी आने के लिए निमंत्रित किया। पत्र के साथ उन्होंने निम्नलिखित सवैया भी लिख भेजी थी:-
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नेकौ एक केश की न समता सुकेशी लहै,
 
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नैनन के आगे लागै कमल रुमाली।
दीन-दयाल दया कै मिलो,
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तिल सी तिलोत्तमाहू रति हू सी लगे,
दरसे बिनु बीतत हैं समै सोचन।
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समनुख ठाढ़ रहै लाल हित लालची॥
सुद्ध सतोगुण ही के सने ते,
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‘चन्द्रकला’ दान आगे दीन कल्पवृक्ष लागै,
बिसंकित सूल सनेह सकोचन॥
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वैभव के आगे लागे इन्द्रहू कुदालची।
तोरि दियो तरु धीर-कगार के,
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धन्य धन्य राधे बृषभानु की दुलारी तोहिं,
ह्वै सरिता मनो बारि विमोचन।
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जाके रूप आगे लगे चन्द्रमा मसालची॥
चन्द्रकला के बने बलदेवजी,
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बावरे से महा लालची लोचन॥
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14:54, 19 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

नेकौ एक केश की न समता सुकेशी लहै,
नैनन के आगे लागै कमल रुमाली।
तिल सी तिलोत्तमाहू रति हू सी लगे,
समनुख ठाढ़ रहै लाल हित लालची॥
‘चन्द्रकला’ दान आगे दीन कल्पवृक्ष लागै,
वैभव के आगे लागे इन्द्रहू कुदालची।
धन्य धन्य राधे बृषभानु की दुलारी तोहिं,
जाके रूप आगे लगे चन्द्रमा मसालची॥