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"तेरी नज़रों से क्या गिरा हूँ मैं / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'" के अवतरणों में अंतर

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तेरी नवाज़िशों का करम बेहिसाब है
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तेरी नज़रों से क्या गिरा हूँ मैं
अपनी हर एक बात का तू खुद जवाब है
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अपनी नज़रों में गिर गया हूँ मैं
  
क्या पूछता हो कैसे गुज़रती है इन दिनों
+
वहशी दीवाना सिरफिरा हूँ मैं
बस मैं हूँ और गर्दिशे जामे शराब है
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खैर जो भी हूँ आपका हूँ मैं
  
पहले भी मिल चुके हैं कई बार आप से
+
अब कोई मेहरबाँ हुआ तो क्या
शर्मा रहे हैं आप ये कैसा हिजाब है
+
अब तो दुनिया से उठ रहा हूँ मैं
  
भेजा गया है मुझको मेरा ख़त ही फाड़कर
+
अपने घर से उठा है सैले बला
मेरी शिकायतों का ये कैसा जवाब है
+
अपने अश्क़ों में बह गया हूँ मैं
  
तुझको ख़बर भी है मेरे हमदम मेरे हबीब
+
ऐ अजल आ के मेरी मेहमां हो
तेरे मरीज़े-इश्क़ की हालत खराब है
+
राह मुद्दत से तक रहा हूँ मैं
  
मेरी ख़ता ने मुझको फ़लक से गिरा दिया
+
हो चुके हैं अलम गले का हार
तेरे करम का सिलसिला तो बेहिसाब है
+
ज़िंदा क्योंकर हूँ सोचता हूँ मैं
  
ऐसी नज़र से ग़ैर ने देखा है आपको
+
कैसे सुलझेगी इश्क़ की गुत्थी
आंखें बता रही हैं कि नीयत खराब है
+
एक उलझन में फंस गया हूँ मैं
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बात अपनी गरज़ की है 'अंजान'
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तू मेरा हो न हो तेरा हूँ मैं।
  
'अंजान' जिसकी आंख में शर्मो हया न हो
 
दरकार उसके वास्ते होता हिजाब है।
 
 
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19:53, 26 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

तेरी नज़रों से क्या गिरा हूँ मैं
अपनी नज़रों में गिर गया हूँ मैं

वहशी दीवाना सिरफिरा हूँ मैं
खैर जो भी हूँ आपका हूँ मैं

अब कोई मेहरबाँ हुआ तो क्या
अब तो दुनिया से उठ रहा हूँ मैं

अपने घर से उठा है सैले बला
अपने अश्क़ों में बह गया हूँ मैं

ऐ अजल आ के मेरी मेहमां हो
राह मुद्दत से तक रहा हूँ मैं

हो चुके हैं अलम गले का हार
ज़िंदा क्योंकर हूँ सोचता हूँ मैं

कैसे सुलझेगी इश्क़ की गुत्थी
एक उलझन में फंस गया हूँ मैं

बात अपनी गरज़ की है 'अंजान'
तू मेरा हो न हो तेरा हूँ मैं।