भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दिल में फिर आग लगाती हैं चटकती कलियाँ / मेहर गेरा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मेहर गेरा |अनुवादक= |संग्रह=लम्हो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

08:37, 29 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

 
दिल में फिर आग लगाती हैं चटकती कलियाँ
रुत बदलती है तो अहसास बदल जाता है

फूल जलते हैं तो होती है फ़ना ख़ुशबू भी
दिल जो जलता है तो अहसास भी जल जाता है

मैं तो उस चांद की क़ुर्बत में रहा हूँ जिसको
इक नज़र देख के सूरज भी पिघल जाता है

दिल में हो प्यार का अहसास तो अपने हैं सभी
ये वो सिक्का है जो हर देस में चल जाता है।