भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ग़मे-ज़माना का जिसके भी दिल में चाव है / मेहर गेरा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मेहर गेरा |अनुवादक= |संग्रह=लम्हो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
09:02, 29 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण
ग़मे-ज़माना का जिसके भी दिल में चाव है
उसे ही दोस्तो जीने से कुछ लगाव है
मुझे न तिफ्ल-तसल्ली से खुश करे दुनिया
मैं जानता हूँ ये मंज़िल नहीं पड़ाव है
नहीं है कोई ख़िलाफ़े-रवानिए-दरिया
सभी रवां हैं उधर जिस तरफ बहाव है
हरेक सम्त ही मजबूरियों के तूफां हैं
अजीब हाल में खुद्दरियों की नाव है
खुलूसे-दिल की यहां क़द्र ही नहीं ए मेहर
बड़ा ही अहले-मुहब्बत में रख-रखाव है