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"जीवन का हर पल बीता है दुविधा में‚ कठिनाई में / अजय अज्ञात" के अवतरणों में अंतर
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जीवन का हर पल बीता है दुविधा में‚ कठिनाई में
मत पूछो कैसे काटे दिन यौवन के तन्हाई में
कैसे पाओगे रत्नों को बैठ किनारे सागर के
मोती पाने हों तो उतरो सागर की गहराई में
झूठी दौलत‚ झूठी माया‚ झूठी है दुन्या सारी
जीवन का बस सार छिपा है केवल इस सच्चाई में
मेरे तक आता है झोंका तबतब तेरी यादों का
जबजब बोले दूर पपीहा सावन की पुरवाई में
सोचा करता हूँ ख़्वाबों में कितना अच्छा होता गर
मेरा भी जीवन कट जाता थोडासा रा'नाई में
दुल्हन की उठती जब डोली आंखों से आंसू झरते
देखो कितना दर्द छिपा है रुख़्सत की शहनाई में