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महक आती है यूँ उर्दू ज़बां से
कि ख़ुशबू आये जैसे गुल्सितां से
भरोसा है जिसे ख़ुद पर कभी वो
नहीं डरता किसी भी इम्तिहां से
रखो गुस्से ़ पे क़ाबू अपने हरदम
कभी कड़वा न बोलो इस ुबां से
यक़ीनन आँखों का धोका है यारो
ज़्ामीं मिलती नहीं है आसमां से
कहाँ जाते हैं जग से जाने वाले
‘अजय’ पूछो गुबारे ़ कुश्तगां से