भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"समझते हो बड़ी आसानियाँ हैं / अजय अज्ञात" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजय अज्ञात |अनुवादक= |संग्रह=जज़्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
09:19, 30 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण
समझते हो बड़ी आसानियाँ हैं
वफ़ा की राह में दुश्वारियाँ हैं
ज़रा सा वक़्त खुलने में लगेगा
मेरे अशआर में गहराइयाँ हैं
मेरी ख़ातिर नहीं फुरसत ज़रा भी
भला ऐसी भी क्या मजबूरियाँ हैं
मैं शाइर हूँ मेरे हिस्से की दौलत
फ़क़त ये दाद और ये तालियाँ हैं
मुकम्मल हो गयी है अपनी बाज़ी
‘अजय’ अब चलने की तैयारियाँ हैं