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"समझते हो बड़ी आसानियाँ हैं / अजय अज्ञात" के अवतरणों में अंतर

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09:19, 30 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

समझते हो बड़ी आसानियाँ हैं
वफ़ा की राह में दुश्वारियाँ हैं

ज़रा सा वक़्त खुलने में लगेगा
मेरे अशआर में गहराइयाँ हैं

मेरी ख़ातिर नहीं फुरसत ज़रा भी
भला ऐसी भी क्या मजबूरियाँ हैं

मैं शाइर हूँ मेरे हिस्से की दौलत
फ़क़त ये दाद और ये तालियाँ हैं

मुकम्मल हो गयी है अपनी बाज़ी
‘अजय’ अब चलने की तैयारियाँ हैं