भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मिट्टी का खि़लौना क्यूँ ख़ुद ही से हिरासां है / अजय अज्ञात" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजय अज्ञात |अनुवादक= |संग्रह=जज़्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

09:37, 30 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

मिट्टी का ख़िलौना क्यूँ ख़ुद ही से हिरासां है
किरदार पे वो अपने क्यूँ इतना पशेमां है

पैसा भी बहुत जोड़ा सामां भी बहुत जोड़ा
लेकिन वो नहीं जोड़ा जीने का जो सामां है

है बर्ग तरो ताज़ा और तेज़ हवाएँ भी
नाजुक सी नयी डाली इस सोच से लरजां है

दुनिया के झमेलों से फुर्सत ही नहीं मिलती
कुछ शे‘र जो कह पाया तनहाई का अहसां है

पहले भी ‘अजय’ इसने देखा है बहुत है मुझको
फिर आज ये आईना किस बात पे हैरां है