भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मुद्दत के बाद दोस्त पुराना मिला मुझे / अजय अज्ञात" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजय अज्ञात |अनुवादक= |संग्रह=जज़्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

09:49, 30 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

मुद्दत के बाद दोस्त पुराना मिला मुझे
मर्कज़ पे जैसे वक़्त ही ठहरा मिला मुझे

मुद्दत के बाद आईने के रू-ब-रू हुआ
हैरां था मेरा अक्स भी धुँधला मिला मुझे

वो ऐब ही गिनाता रहा मेरे हर घड़ी
दुनिया की भीड़ में कोई अपना मिला मुझे

गीता की यूँ ही झूठी क़सम खा रहे थे सब
इक बेजुबान शख़्स ही सच्चा मिला मुझे

जो आरजू-ए-हुस्न में दिल था मचल गया
‘अज्ञात’ कुछ ही दिन में वो टूटा मिला मुझे