भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इक ख़ुशनुमा सा ख़्वाब सजाने नहीं दिया / अजय अज्ञात" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजय अज्ञात |अनुवादक= |संग्रह=जज़्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

10:09, 30 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

इक ख़ुशनुमा-सा ख़्वाब सजाने नहीं दिया
दिल को ज़रा सुकून भी आने नहीं दिया

पलभर की भी जुदाई न मंजूर है जिसे
उस ने कभी क़रीब भी आने नहीं दिया

जितने भी ग़म मिले हमें वो ज़ब्त कर लिए
आँखों को एक अश्क बहाने नहीं दिया

टीका लगा के माँ ने मेरे कान के करीब
मुझ तक बला के साये को आने नहीं दिया

जल्दी थी ऐसी मौत को आने की क्या ‘अजय’
इस जिं़दगी का साथ निभाने नहीं दिया