भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"एक दिन सब जहाँ से चल देंगे / अनु जसरोटिया" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनु जसरोटिया |अनुवादक= |संग्रह=ज़...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:46, 30 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण
एक दिन सब जहाँ से चल देंगे
साथ कब ज़िंदगी के पल देंगे
ढलते सूरज को कौन पूछेगा
चढ़ते सूरज को लोग जल देंगे
हम लगायेंगे जिस तरह के शजर
वैसे ही एक दिन वो फल देंगे
इस ज़माने में फूल मत बनना
लोग पैरों तले मसल देंगे
जितनी रस्में हैं वक्त के विपरीत
ऐसी रस्मों को हम बदल देंगे
छलनी करते हैं पैर जो सब के
ऐसे कांटों को हम कुचल देंगे
ऐसी आशा है आज कल बेकार
साफ़ पानी हमें ये नल देंगे
इतना कड़वा न तू जहाँ में बन
दुनिया वाले तुझे उगल देंगे
आओ पौधे लगाएँ मिल कर सब
कल को ये पेड़ बन के फल देंगे