भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जिस डगर से भी गुज़र जाऊँगी / अनु जसरोटिया" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनु जसरोटिया |अनुवादक= |संग्रह=ख़...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:57, 30 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण
जिस डगर से भी गुज़र जाऊँगी
बन के ख़ुश्बू सी बिखर जाऊँगी
चांद सूरज की तरह मैं रोशन
नाम मां बाप का कर जाऊँगी
जिस गली श्याम मिरा रहता है
उस गली शामों-सहर जाऊँगी
तू कन्हैया है मैं तेरी राधा
तेरी चाहत में संवर जाऊँगी
रानी झांसी सी निडर हूं मैं तो
मत समझना कि मैं डर जाऊँगी
वो जो है श्दूर -नगरश् का वासी
ढूंड़ने उस को किधर जाऊँगी
वक़्त की तेज़ हवा के आगे
सूखे तिनकों सा बिखर जाऊँगी