भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"महीना सावन का / देवमणि पांडेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवमणि पांडेय }} Category:गीत :सजनी आंख मिचौली खेले<br> :बांध ...)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:30, 26 जुलाई 2008 के समय का अवतरण

सजनी आंख मिचौली खेले
बांध दुपट्टा झीना
महीना सावन का

कर गया मुश्किल जीना महीना सावन का

मौसम ने ली है अंगड़ाई
चुनरी उड़ि उड़ि जाए
बैरी बदरा गरजे बरसे
बिजुरी होश उड़ाए

घर-आंगन, गलियां चौबारा आए चैन कहीं ना

खेतों में फ़सलें लहराईं
बाग़ में पड़ गये झूले
लम्बी पेंग भरी गोरी ने
तन खाए हिचकोले

पुरवा संग मन डोले जैसे लहरों बीच सफ़ीना

बारिश ने जब मुखड़ा चूमा
महक उठी पुरवाई
मन की चोरी पकड़ी गई तो
धानी चुनर शरमाई

छुई मुई बन गई अचानक चंचंल शोख़ हसीना

कजरी गाएं सखियां सारी
मन की पीर बढ़ाएं
बूंदें लगती बान के जैसे
गोरा बदन जलाएं

अब के जो ना आए संवरिया ज़हर पड़ेगा पीना