भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पसीने पसीने हुए जा रहे हो / सईद राही" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सईद राही |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
04:02, 24 अक्टूबर 2018 के समय का अवतरण
पसीने पसीने हुए जा रहे हो
ये बोलो कहाँ से चले आ रहे हो
हमें सब्र करने को कह तो रहे हो
मगर देख लो ख़ुद ही घबरा रहे हो
ये किसकी बुरी तुम को नज़र लग गई है
बहारों के मौसम में मुर्झा रहे हो
ये आईना है ये तो सच ही कहेगा
क्यों अपनी हक़ीक़त से कतरा रहे हो