भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"खेत डूबे हुए हैं पानी में / राम नाथ बेख़बर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राम नाथ बेख़बर |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:34, 18 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण

खेत डूबे हुए हैं पानी में
मर रहे लोग अब किसानी में।

मुल्क के काम जो नहीं आती
आग लग जाए उस जवानी में।

गाँव में हर तरफ अँधेरा है
धूप है कैद राजधानी में।

रोज क़िरदार मैंने बदला है
ट्विस्ट आया नहीं कहानी में।

जबकि कुछ भी नहीं यहाँ अपना
जी रहे लोग बदगुमानी में।

ज़ख्म ही ज़ख्म मैंने पाएँ हैं
बेख़बर प्यार की निशानी में।