भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मीठा जल बरसानेवाले / पुरुषार्थवती देवी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुरुषार्थवती देवी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
05:06, 29 दिसम्बर 2018 का अवतरण
नील वर्ण की चादर डाले घुमड़-घुमड़कर आनेवाले।
नगर, गाँव, गिरि-गह्वर, कानन निज सन्देश सुनानेवाले॥
तूने देखा सभी ज़माना, पहला गौरव भी था जाना।
वर्तमान तूने पहचाना, लुटा चुके हम सभी ख़जाना॥
दिन खोटे आये जब अपने, सुखद दिनों के लेते सपने।
साहस बल सब कुछ खोकर हम स्वार्थ-माल ले बैठे जपने॥
ऐसा अमृत-जल बरसा दे, तप्त दिलों की प्यास बुझा दे।
वीरों का संदेश सुना दे, हमको निज कर्तव्य सुझा दे॥
हे स्वच्छन्द विचरनेवाले, हे स्वातन्त्र्य-सुधा-रसवाले।
हमको भी स्वाधीन बना दे, मीठा जल बरसानेवाले॥