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"टूट कर जाता बिखर गर हौसला होता नहीं / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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टूट कर जाता बिखर गर हौसला होता नहीं
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क्यों यक़ीं होने लगा कोई ख़ुदा होता नहीं
  
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आदमी ही आदमी के काम आता दोस्तो
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आदमी से बढ़ के कोई दूसरा होता नहीं
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राम, रावन सब इसी दुनिया में आ कर के बनें
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जन्म से इन्साँ कोई अच्छा, बुरा होता नहीं
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चार पल के वास्ते बेशक किसी को हो ग़ुरूर
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धन जमा करके बशर कोई बड़ा होता नहीं
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क्या अहमियत प्यार की है, क्या ज़रूरत है तेरी
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क्या पता चलता अगर तुझसे ज़ुदा होता नहीं
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देर से आई समझ में बात यह लेकिन मेरे
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बावफ़ा होता जो मैं वो बेवफ़ा होता नहीं
 
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15:12, 30 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण

टूट कर जाता बिखर गर हौसला होता नहीं
क्यों यक़ीं होने लगा कोई ख़ुदा होता नहीं

आदमी ही आदमी के काम आता दोस्तो
आदमी से बढ़ के कोई दूसरा होता नहीं

राम, रावन सब इसी दुनिया में आ कर के बनें
जन्म से इन्साँ कोई अच्छा, बुरा होता नहीं

चार पल के वास्ते बेशक किसी को हो ग़ुरूर
धन जमा करके बशर कोई बड़ा होता नहीं

क्या अहमियत प्यार की है, क्या ज़रूरत है तेरी
क्या पता चलता अगर तुझसे ज़ुदा होता नहीं

देर से आई समझ में बात यह लेकिन मेरे
बावफ़ा होता जो मैं वो बेवफ़ा होता नहीं