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"देशभक्ती के नारे गढ़े जा रहे / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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देशभक्ती के नारे गढ़े जा रहे
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सरहदों पे सिपाही कटे जा रहे
  
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कल का गद्दार सूबे का मंत्री है अब
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लेाग उसकी भी जय-जय किये जा रहे
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अब तो दिल्ली में मुश्किल से दर्ज़ी मिलें
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सिर्फ पीएम के कपड़े सिले जा रहे
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देश में जैसे सन्तों की बाढ़ आ गयी
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बन के बाबा वो सबको ठगे जा रहे
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हम भी डीएम हैं लेकिन फटेहाल हैं
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कितने डीएम तिजोरी भरे जा रहे
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जब किसानों की है फिक्र सरकार को
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क्यों वो सल्फ़ास खाके मरे जा रहे
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हम तो अपने वतन ही में बेगाने हैं
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हम तो अपने ही घर में छले जा रहे
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कितने अशफ़ाक़, बिस्मिल को तुम जानते
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गाल नाहक बजाये चले जा रहे
 
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15:15, 30 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण

देशभक्ती के नारे गढ़े जा रहे
सरहदों पे सिपाही कटे जा रहे

कल का गद्दार सूबे का मंत्री है अब
लेाग उसकी भी जय-जय किये जा रहे

अब तो दिल्ली में मुश्किल से दर्ज़ी मिलें
सिर्फ पीएम के कपड़े सिले जा रहे

देश में जैसे सन्तों की बाढ़ आ गयी
बन के बाबा वो सबको ठगे जा रहे

हम भी डीएम हैं लेकिन फटेहाल हैं
कितने डीएम तिजोरी भरे जा रहे

जब किसानों की है फिक्र सरकार को
क्यों वो सल्फ़ास खाके मरे जा रहे

हम तो अपने वतन ही में बेगाने हैं
हम तो अपने ही घर में छले जा रहे

कितने अशफ़ाक़, बिस्मिल को तुम जानते
गाल नाहक बजाये चले जा रहे