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शिकवा / इक़बाल

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''टिप्पणी: शिकवा इक़बाल की शायद सबसे चर्चित रचना है जिसमें उन्होंने इस्लाम के स्वर्णयुग को याद करते हुए ईश्वर से मुसलमानों की तात्कालिक हालत के बारे में शिकायत की है। यह 1906 1909 में प्रकाशित हुई थी। ''
क्यूँ ज़ियांकार बनूँ, सूद फ़रामोश रहूँ
तेग़<ref>तलवार</ref> क्या चीज़ है, हम तोप से लड़ जाते थे।
नक़्श तौहीद<ref>त'वाहिद, एकत्व. यानि ये कहना कि अल्लाह एक है और उसके स्वरूप, तस्वीर या मूर्तियां नहीं हैं, अरबी गिनती में वाहिद का अर्थ 'एक' होता है। </ref> का हर दिल पे बिठाया हमने।
तेरे ख़ंज़र लिए पैग़ाम सुनाया हमने।
तू ही कह दे के, उखाड़ा दर-ए-ख़ैबर<ref> ख़ैबर मदीना के पास एक स्थान है, जहाँ यहूदी रहा करते थे। अन्य यहूदियों के साथ सांठगाँठ करने के शक में मुस्लिम सेना को पैग़म्बर मुहम्मद ने इनपर आक्रमण का हुकम दिया। युद्ध में यहूदी हार गए और इस लड़ाई को उस समय और आज भी एक प्रतीकात्मक विजय के रूप में देखा जाता है। उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान में पेशावर के पास का दर्रा भी इसी नाम से है, जिससे होकर कई विदेशी आक्रांता भारत आए; सिकंदर, बाबर और नादिर शाह इनमें से कुछ उल्लेखनीय नाम हैं। </ref> किसने?
शहर कैसर<ref>सीज़र का अरबी नाम, सीज़र रोम के शासक की उपाधि होती थी - जूलयस सीज़र, ऑगस्टस सीज़र आदि </ref> का जो था, उसको किया सर किसने?
तोड़े मख़्लूक<ref>बनाया हुआ, कृत्रिम। इस्लाम के विश्वास के मुताबिक ईश्वर की वंदना उचित है और ईश्वर के रूप रूपक (तस्वीर, मूर्ति ) तथा ईश्वर के द्वारा बनाए अर्थात बनाई गए चीज़ों की वंदना अनुचित। इन ईश्वर द्वारा बनाई गई चीजों में सूर्य, चांद, पेड़, कोई व्यक्ति इत्यादि आते हैं जिसकी वंदना स्वीकार्य नहीं है। </ref> ख़ुदाबन्दों के पैकर<ref>आकृति, स्वरूप</ref> किसने?
काट कर रख दिये कुफ़्फ़ार<ref>काफ़िर का बहुवचन</ref> के लश्कर<ref>सेना</ref> किसने?
किसने ठंडा किया आतिशकदा<ref>अग्निगृह, इस्लाम के पूर्व ईरान के लोग आग और देवी-देवताओं की पूजा करते थे</ref>-ए-ईरां को?
किसने फिर ज़िन्दा किया तज़कराएतज़कर-ए-यज़दां को?
कौन सी क़ौम फ़क़त<ref> सिर्फ़</ref> तेरी तलबगार हुई?
आ के बैठे भी न थे और निकाले भी गए।
आए उश्शाक़ <ref>आशिक़ का बहुवचन</ref>, गए वादा-ए-फरदा फ़रदा लेकर।
अब उन्हें ढूँढ चराग-ए-रुख़-ज़ेबा लेकर।
दर्द-ए-लैला भी वही, क़ैस <ref>लैला -मजनूं की कहानी में मजनूं का वास्तविक नाम क़ैस था। मजनूं का नाम उसे पाग़ल बनने के बाद मिला। अरबी भाषा में मजनूं मजनून का शाब्दिक अर्थ पागल होता है। </ref> का पहलू भी वही।
नज्द <ref>मध्य अरब का रेगिस्तान </ref>के दश्त-ओ-जबल में रम-ए-आहू <ref>हिरण की चौकड़ी </ref> भी वही।
इश्क़ का दिल भी वही, हुस्न का जादू भी वही।
उम्मत-ए-अहदअहमद-मुरसल भी वही, तू भी वही।
फिर ये आजुर्दगी<ref>चिढ़ाना</ref>, ये ग़ैर-ए-सबब क्या मानी?
अपने शअदाओं शऽदाओं पर ये चश्म-ए-ग़ज़ब क्या मानी?
तुझकों छोड़ा कि रसूल-ए-अरबी <ref>अरब का पैग़म्बर, यानि मुहम्मद </ref> को छोड़ा?
रस्म-ए-सलमान-ओ-उवैश-ए-क़रनी<ref>क़रनी, सीरिया के उवैश जो इस्लाम के शुरुआती परिवर्तितों में थे। हज़रत अली के समर्थन में उन्होंने कर्बला की लड़ाई लड़ी और जिसमें वो शहीद हुए थे। </ref> को छोड़ा?
आग तकबीर <ref>ये स्वीकारना कि अल्लाह एक है और मुहम्मद उसका दूत था, इस्लाम कबूल करना या करवाना </ref> की सीनों में दबी रखते हैं
ज़िंदगी मिस्ल-ए-बिलाल-ए-हबसी रखते हैं।
वादी ए नज्द में वो शोर-ए-सलासिल <ref>जंज़ीर </ref> न रहा।
क़ैस दीवाना-ए-नज्जारानज़्ज़ारा-ए-महमिल न रहा।
हौसले वो न रहे, हम न रहे, दिल न रहा।
घर ये उजड़ा है कि तू रौनक-ए-महफ़िल न रहा।
ऐ ख़ुश आं रूज़ के आइ व ब-सद बसद नाज़ आई।
बे हिजाबाने सू-ए-महफ़िल-ए-मा बाज़ आई।
सुनते हैं जाम बकफ़<ref>हथेली पर </ref>, नग़मा-ए-कू-कू बैठे।
दूर हंगामा-ए-गुल्ज़ार से यकसू <ref>एक तरफ़ </ref> बैठे
तेरे दीवाने भी है मुंतज़रमुंतज़िर-ए-हू बैठे।
अपने परवानों को फ़िर ज़ौक-ए-ख़ुदअफ़रोज़ी<ref>खुद को जलाने का मज़ा</ref> दे।
मूर-ए-बेमायां को अंदोश-ए-सुलेमां कर दे।
जिन्स-ए-नायाब-ए-मुहब्बत<ref>ऐसे दुर्लभ प्रेमियों (यहाँ पर अर्थ मुस्लमानों से है)</ref> को फ़िर अरज़ां<ref>सुलभ, सस्ता</ref> कर दे
हिन्द के दैर नशीनों<ref>पुराने देवियों देवियो की ख़िदमत करने वाले</ref> को मुसल्मां कर दे।
जू-ए-ख़ून मीचकद अज़ हसरते दैरीना मा।
मीतपद नाला ब-नश्तर निश्तर कदा-ए-सीना मा। <ref> फ़ारसी में लिखी पंक्ति का अर्थ है - ख़ून की धार हमारी पुरानी हसरतों से निकलती है, और सीने के हत्यागार से हमारे चीखने की आवाज़ आती है। (अपूर्ण अनुवाद है। ) </ref>
बू-ए-गुल ले गई बेरूह-ए-चमन राज़-ए-चमन।
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