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"आओ मन की परतें खोलें / निशान्त जैन" के अवतरणों में अंतर

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आओ अपने संग संजो लें।
 
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जीवन की हर महक बसी है,
 
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आओ मन की परतें खोलें।
 
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रिश्तों की मीठी गरमाहट,
 
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अरमानों की नाज़ुक आहट,
 
अरमानों की नाज़ुक आहट,

22:12, 20 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

लाल-लाल से बादल ऊपर,
और नीचे धानी सी चादर,
दूर क्षितिज पर ढलता सूरज,
क्या कहता है हौले-हौले।
आओ मन की परतें खोलें।

जिनका जीवन है पहाड़ सा,
पर चेहरों पर मुस्कानें हैं,
उन मुस्कानों की मिठास को,
आओ अपने संग संजो लें।
आओ मन की परतें खोलें।

मिट्टी की सोंधी खुशबू में,
जीवन की हर महक बसी है,
इस मिट्टी का कतरा-कतरा,
लेकर जीवन में रस घोलें।
आओ मन की परतें खोलें।

रिश्तों की मीठी गरमाहट,
अरमानों की नाज़ुक आहट,
खोल के रख दें दिल की टीसें,
मिलकर हँस लें, मिलकर रो लें।
आओ मन की परतें खोलें।