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"टेसू के फूलों के भारी हैं पाँव / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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टेसू के फूलों के
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फूलों के
 
भारी हैं पाँव
 
भारी हैं पाँव
  
रूप दिया
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रूप दिया प्रभु ने  
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पर गंध नहीं दी
गंध नहीं दी
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पत्ते भी छीन लिए
पत्ते भी
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धूप ने सभी
 
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सूरज अब मर्जी से
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खेल रहा दाँव
 
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मंदिर में
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मंदिर में जगह नहीं
जगह नहीं
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मस्जिद अनजान
 
मस्जिद अनजान
घर बाहर
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घर-बाहर ग्राम-नगर
ग्राम नगर
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मिलता अपमान
करते अपमान
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नहीं मिली छुपने को
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कहीं नहीं  
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छुपने को
 
पत्ती भर छाँव
 
पत्ती भर छाँव
  
रँग अपना
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रंग अपना
 
देने को
 
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पिसते हैं रोज
 
पिसते हैं रोज
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जंगल की आग कहें
 
जंगल की आग कहें
सभ्य शहर गाँव
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सभ्य शहर-गाँव
 
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09:53, 21 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

टेसू के
फूलों के
भारी हैं पाँव

रूप दिया प्रभु ने
पर गंध नहीं दी
पत्ते भी छीन लिए
धूप ने सभी

सूरज अब
मरज़ी से
खेल रहा दाँव

मंदिर में जगह नहीं
मस्जिद अनजान
घर-बाहर ग्राम-नगर
मिलता अपमान

कहीं नहीं
छुपने को
पत्ती भर छाँव

रंग अपना
देने को
पिसते हैं रोज
फूलों सा
इनका मन
भूले सब लोग

जंगल की आग कहें
सभ्य शहर-गाँव