भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कुरसी / ये लहरें घेर लेती हैं / मधु शर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधु शर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
02:28, 24 जनवरी 2019 के समय का अवतरण
पुरानी उदासी में
कोई देर तक रहा होगा,
उसी का होना
यहाँ छूटा है इस तरह
छूटी हुई जगह में रह गई कुर्सी पर
हाथों से छूट गया कोई ख़याल
अभी तक अटका है आसमान में
ज़मीन-छूती डोर से बँधा?
उठा ली गई फ़सलों से
ख़ाली पड़े खेत में कुछ बीज हैं
जीवन वहीं से बीन रहे कव्वे
ढलती दोपहर के साये में।