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"झरोखा / ये लहरें घेर लेती हैं / मधु शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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02:29, 24 जनवरी 2019 के समय का अवतरण


वह चाहती है
हटा देना पाट खिड़कियों के
मन के झरोखों के पार

फेंक दिए उसने सब आवरण
संकोच और अवकाश

देह से अवसान लिए
वह सट कर खड़ी है झरोखे से

अपने सब कुछ के होने से मुक्त
वह बस आने को है बाहर
इस देह से; यह काँच भी हटाती हुई।