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"इस दुनियादारी का कितना भारी मोल चुकाते हैं / हस्तीमल 'हस्ती'" के अवतरणों में अंतर

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10:53, 25 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

इस दुनियादारी का कितना भारी मोल चुकाते हैं
जब तक घर भरता है अपना हम ख़ाली हो जाते हैं

इंसानों के अंतर्मन में कई सुरंगें होती हैं
अपने आपको ढूँढ़ने वाले ख़ुद इनमें खो जाते हैं

अपने घर के आँगन को मत क़ैद करो दीवारों में
दीवारें ज़िंदा रहती हैं लेकिन घर मर जाते हैं

आने को दोनों आते हैं इस जीवन के आँगन में
दुख अरसे तक बैठे रहते सुख जल्दी उठ जाते हैं

एक हिसाब हुआ करता है लोगों के मुस्काने का
जितना जिससे मतलब निकले उतना ही मुस्काते हैं