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"समन्दर ढूँढ़ रहा है पानी / मुन्नी गुप्ता" के अवतरणों में अंतर
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14:32, 5 फ़रवरी 2019 के समय का अवतरण
समन्दर
ढूँढ़ रहा है पानी
समन्दर भर नहीं
प्यास भर ।
समन्दर
ढूँढ़ रहा है छाँव
आसमाँ भर नहीं
नज़र भर ।
समन्दर
ढूँढ़ रहा है जीवन
रेगिस्तान भर नहीं
बून्द भर ।
समन्दर
ढूँढ़ रहा है ज़मीन
पृथ्वी भर नहीं
पाँव भर ।
समन्दर
ढूँढ़ रहा है निरन्तर
पानी, छाँव, जीवन, ज़मीन
फैल रहा है निरन्तर
अपनी बेचैनी में
अनवरत संघर्ष जारी है
समन्दर के भीतर
उसे शायद
किसी बुद्ध की तलाश है
जो उसे
जीवन का गूढ़तम पाठ समझा सके ।