भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चलके आगी महल मेरे मै, काम बण्या मन चाहया / ललित कुमार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=ललित कुमार (हरियाणवी कवि)  
 
|रचनाकार=ललित कुमार (हरियाणवी कवि)  
 
|अनुवादक=
 
|अनुवादक=
|संग्रह=
+
|संग्रह=सन्दीप कौशिक
 
}}
 
}}
 
{{KKCatHaryanaviRachna}}
 
{{KKCatHaryanaviRachna}}

12:00, 8 फ़रवरी 2019 के समय का अवतरण

चलके आगी महल मेरे मै, काम बण्या मन चाहया,
करकै दर्शन होज्या प्रसन्न, भरी उमंग मै काया || टेक ||

मेरे उपर आज दासी, शान टेक दिया खास तनै,
घोर अँधेरा था मेरे भवन मै, यो कर दिया प्रकाश तनै,
मै पटरानी बणाकै राखुन्गा, मिल्ज्यांगे दासी-दास तनै,
इब किते जाण की नहीं जरूरत, हो रहणा मेरे पास तनै,
तनै पलका ऊपर राखु गौरी, तेरी हाथा करल्यु छाया ||

तेरे आवण की बात इसी, सुक्के धान्ना नै पाणी की,
इतनी सुथरी शान नही, उस ब्रह्मा की ब्राह्मणी की,
सबतै गहरी चोट बताई, इस दुनिया मै वाणी की,
ब्याह करकै देदू महल हवेली, पदवी देदू महांराणी की,
मेरै छतीस भोजन बणै महल मै, तनै दासी बण टुकड़ा खाया ||

सोच-सोचकै शरीर सुखज्या, क्यूँ वार लगाकै आई तूं,
बावली सी होरी दासी, के भूलगी थी राही तूं,
तेरे ताड़े की ना और लुगाई, भागा करकै पाई तूं,
तेरा-मेरा मेल मिलै, मेरी करदे मन की चाही तूं,
तेरे आवण की इसी ख़ुशी, मनै भोजन भी ना भाया ||

इतनी सुथरी शान तेरी, क्यूँ बणकै रहवै दासी,
छाया माया कैसी दिखै, तूं हूर सोला राशी,
आदमदेह मै जन्म धार, रटणा चाहिए कैलाशी,
कहै ललित गुरु सेवा तै, कट्ज्या गल की फांसी,
हरियाणे मै जिला भिवानी, एक गाम बुवाणी बताया ||