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Kavita Kosh से
आँखें बन्द करके मैंने
चरखा कात रही बुढ़िया के बारे में सोचा.
मेरा बायस्कोप कितना अच्छा था
रोज़ रात सोने से पहले दिखा देखा करता .
तब बचपन था,
लेकिन अब—
चरखा कात रही बुढ़िया