भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"छेड़ दी बात किस जमाने की / मनीष कुमार झा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनीष कुमार झा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{K...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:52, 9 मार्च 2019 के समय का अवतरण
छेड़ दी बात किस जमाने की
बात होती कहाँ निभाने की
साफ़ कहता है उसका इतराना
हाथ चाभी लगी खजाने की
सबने अपने गुरूर पाले हैं
बात होगी न अब ठिकाने की
क्यों दिखाता है आईना उसको
उसकी आदत है रूठ जाने की
उसने पहरे बिठा दिए, जिस पर
राह अपनी है आने-जाने की
खाए जिससे हजार धोखे ही
सोचता हूँ कि आजमाने की
जो भी कहना है साफ़ कह देंगे
क्या जरूरत किसी बहाने की