भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सब तरफ़ खामोशियाँ हैं सब तरफ़ तनहाइयाँ / रंजना वर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=शाम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:01, 18 मार्च 2019 के समय का अवतरण
सब तरफ़ खामोशियाँ हैं सब तरफ़ तनहाइयाँ
हैं डरातीं अब हमें क्यों अपनी ही परछाइयाँ
श्याम तेरे इश्क़ में डूबे उभर पाये नहीं
थीं ज़माने की मुहब्बत में न ये गहराइयाँ
बाँसुरी वाले तेरी तिरछी नज़र का वास्ता
कर रहीं मदहोश हमको आपकी रानाइयाँ
बौर खुल कर हैं खज़ाने खुशबुओं के बाँटते
कोयलों की कूक सुन कर झूमतीं अमराइयाँ
आँख खुलती ही नहीं तारी नशा है इश्क़ का
बज रहीं कानों में कान्हा प्यार की शहनाइयाँ