भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दूर जंगल के किनारे पर खड़ी है झोंपड़ी / रंजना वर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=शाम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:32, 18 मार्च 2019 के समय का अवतरण

दूर जंगल के किनारे पर खड़ी है झोंपड़ी
यूँ तो है छोटी मगर दिल की बड़ी है झोंपड़ी

है नहीं लेती किसी की रंच भर भी भूमि पर
दृष्टि में भू-माफ़ियाओं के गड़ी है झोंपड़ी

एक निर्धन ने मुहब्बत से बनाया था जिसे
अब हुई जर्जर उपेक्षित-सी पड़ी है झोंपड़ी

भूल कर भटके हुओं को शरण देने के लिये
खोखली सब मान्यताओं से लड़ी है झोंपड़ी

प्यार से देती सदा है हर किसी को आसरा
है कभी सुखदा कभी आँसू झड़ी है झोंपड़ी