भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सत्य की राह से जब भटकने लगे / रंजना वर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=शाम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:02, 19 मार्च 2019 के समय का अवतरण
सत्य की राह से जब भटकने लगे
रात दिन श्याम का नाम रटने लगे
प्यार का साँवरे के नशा चढ़ गया
श्याम के नाम रस में बहकने लगे
खूब आतंक था बढ़ गया कंस का
गोप श्रीकृष्ण को वीर कहने लगे
साँवरे श्याम के शौर्य को देख कर
खाल में शत्रु अपनी सिमटने लगे
नाश चुन-चुन किया था अनाचार का
दीन हरि को सहारा समझने लगे