भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वक्त के साथ ढलना हमें आ गया / रंजना वर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=शाम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:07, 19 मार्च 2019 के समय का अवतरण
वक्त के साथ ढलना हमें आ गया
देख के ग़म पिघलना हमें आ गया
लड़खड़ाने लगे रास्तों पर मगर
ठोकरों से सँभलना हमें आ गया
लोग काँटे बिछाते डगर में रहे
उनसे बच के निकलना हमें आ गया
जिंदगी भर तपे कर्म की आँच में
शाम के साथ ढलना हमें आ गया
एक संकल्प की ली कुदाली उठा
भाग्य अपना बदलना हमें आ गया