भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रीति रिवाज पच्छिमी हुइगे / बोली बानी / जगदीश पीयूष" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKRachna |रचनाकार=भारतेन्दु मिश्र |अनुवादक= |संग्रह=बोली...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 30: | पंक्ति 30: | ||
होई कसक बियाहु | होई कसक बियाहु | ||
− | <poem> | + | </poem> |
07:40, 24 मार्च 2019 के समय का अवतरण
रीति रिवाज पच्छिमी हुइगे
लगै लाग पछियाहु
बीति गवै फागुन की बेला
आय गवा बैसाख
सबियों धरती आँवाँ लागै
धूरि भई अब राख
सहरन की लंग भाजि रहे हैं
लरिका अउरु जवान
हम जइसे बुढ़वन के जिउमा
अब ना बचा उछाहु
अपनि-अपनि सब रीति बनाये
अपनै-अपन सुनावैं
ख्यात-पात सब झूरे परे
घर बैठि मल्हारै गावैं
हुक्का-चिलम-तमाखू लौ का
सूझति नहिन ठेकान
है जवान बिटिया तीका अब
होई कसक बियाहु