भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सहरन ते जुड़िगा है / बोली बानी / जगदीश पीयूष" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKRachna |रचनाकार=भारतेन्दु मिश्र |अनुवादक= |संग्रह=बोली...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 32: | पंक्ति 32: | ||
अउरु राति भर चलिहैं आरा | अउरु राति भर चलिहैं आरा | ||
− | <poem> | + | </poem> |
07:43, 24 मार्च 2019 के समय का अवतरण
सहरन ते जुड़िगा है
हमरे गाँव क्यार गलियारा
नयी रोसनी आय रही
सब गावैं लिहे चिकारा
पहिले जमीदार के चंगुल-
मा सब रहैं फँसे
अब छोटभैया ठग नेता
गाँवैंम आय बसे
जाल रचैं स्वारथ की खातिर
इनते बिधिनौ हारा
मउके पर कोरे कगदन पर
अँगुठा लगवावैं
सालुइ भीतर ई घर की
नीलामी करवावैं
भूखे मरब नीक है
इनते मिलै अगर छुटकारा
जब लौ तथा रही तब लौ
ई मददगार रहिहैं
चारिउ पहर हाजिरी तुमरे घरहेम दइ जइहैं
बिरछ लगइहैं दिन मा
अउरु राति भर चलिहैं आरा